पेड़ों का कत्ल या विकास? उत्तराखंड में वनों की कटाई ने मचाई हलचल
उत्तराखंड की हरी-भरी वादियां, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता और घने जंगलों के लिए जानी जाती हैं, आजकल एक नई वजह से चर्चा में हैं — तेजी से हो रही वनों की कटाई। राज्य में चल रहे इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स और निर्माण कार्यों की वजह से हजारों पेड़ काटे जा रहे हैं, जिससे पर्यावरणविदों और स्थानीय लोगों में गहरी चिंता फैल गई है।
विकास बनाम पर्यावरण
सरकार का तर्क है कि सड़कें, सुरंगें और रेलवे जैसी परियोजनाएं राज्य के आर्थिक विकास और कनेक्टिविटी के लिए जरूरी हैं। लेकिन पर्यावरण कार्यकर्ता सवाल उठा रहे हैं कि क्या यह विकास, प्रकृति की कीमत पर हो रहा है? देहरादून, ऋषिकेश, और चमोली जैसे क्षेत्रों में दर्जनों एकड़ जंगलों को उजाड़ा जा रहा है।
क्या कहती हैं रिपोर्ट्स?
2024 में जारी एक पर्यावरण सर्वे के अनुसार, उत्तराखंड में पिछले पांच वर्षों में लगभग 13,000 हेक्टेयर वन भूमि विभिन्न विकास कार्यों के लिए साफ की गई है। इससे न केवल जैव विविधता को नुकसान पहुंचा है, बल्कि भूस्खलन और <strongजलवायु परिवर्तन जैसी आपदाओं का खतरा भी बढ़ गया है।
सोशल मीडिया पर विरोध
‘#SaveUttarakhandForests’ नामक हैशटैग से लोग सोशल मीडिया पर विरोध दर्ज करवा रहे हैं। युवाओं, पर्यावरणविदों और स्थानीय निवासियों ने मिलकर ऑनलाइन अभियान शुरू किया है ताकि सरकार इस विषय पर दोबारा विचार करे। कई जगहों पर धरना-प्रदर्शन और जन जागरूकता रैलियां भी आयोजित की जा रही हैं।
क्या है विकल्प?
विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को सतत विकास (Sustainable Development) की ओर ध्यान देना चाहिए। इसका मतलब है — विकास कार्यों के साथ-साथ पर्यावरण की रक्षा। वैकल्पिक मार्ग, सुरंगों की बजाय पुल, और आधुनिक तकनीक का उपयोग करके पेड़ों की कटाई को कम किया जा सकता है।
निष्कर्ष
उत्तराखंड का भविष्य उसी पर निर्भर करेगा कि हम आज कैसे निर्णय लेते हैं। विकास जरूरी है, लेकिन अगर वह हमारी प्रकृति और आने वाली पीढ़ियों की कीमत पर हो, तो वह स्थायी नहीं हो सकता। वनों की यह कटाई केवल पेड़ों का नुकसान नहीं है, यह हमारी सांस्कृतिक और पारिस्थितिकी विरासत पर भी आघात है।

